अनुभव के पार निकल जाना
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, शिव और शंकर दोनों एक हैं, या अलग-अलग हैं?
आचार्य प्रशांत: जब उनको मूर्त कर दें तो कह दीजिए शंकर, जब अमूर्त हों तो कह दीजिए शिव। जब असीम हैं तो शिव हैं, जब साकार कर दिया, ससीम कर दिया तो कह दीजिए शंकर। कुछ भी जो असीम हो, अनन्त हो, निराकार हो, हमारी छोटी-सी बुद्धि की पकड़ में नहीं आता न, तो फिर हम उसको एक रूप दे देते हैं। जब रूप देंगे, तो नाम भी देंगे।
प्र२: आचार्य जी, तत्वबोध की चर्चा में विगत में आपने कहा था कि शरीर पर दम, मन में शम। और भगवान ओशो को पढ़ने पर उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में अनुभव से जाकर ही उससे पार जाया जा सकता है। तो मेरी तरफ़ से संशय है कि इसमें क्या विरोधाभास है?
आचार्य: नहीं, अनुभव करके ही अनुभव के पार जाया जा सकता है, पर हो तो गया अनुभव, और कितना अनुभव करोगे? उन्होंने यही तो कहा कि अनुभव कर लो, तभी अनुभव के पार निकलोगे। तो कर तो लिया है अनुभव, अभी और करना है? पिटाई खाने का कितना शौक़ है?
ओशो ने यही कहा न कि जब तक अनुभव ही नहीं करा, तब तक अनुभव के पार क्या जाओगे। बताओ, कौन-सा अनुभव नहीं करा है तुमने? कामना का, वासना का अनुभव नहीं करा है? सुख का, दुःख का अनुभव नहीं करा है? गरीबी का भी करा है, अमीरी का भी करा है। और ग रीबी और अमीरी के कोई चरम तो होते नहीं, तो फिर तो तुम्हें जितनी भी अमीरी मिली हो, तुम कह सकते हो अभी और करना है। वो तो कभी रुकेगा ही नहीं।
हाँ, तुलनात्मक रुप से तुम गरीबी भी देख चुके हो, तुलनात्मक रूप से तुम अमीरी भी देख चुके हो। सब कुछ तो देख…