अध्यात्म के नाम पर अंधविश्वास
आदमी को आदमी बनाती है सच के प्रति उसकी जिज्ञासा। वरना आदमी और जानवर में क्या अंतर है?
और जिस देश में, जिस धर्म में, जिन लोगों में सच के प्रति इतनी भी जिज्ञासा नहीं है कि वो अपने ही मूल धर्म ग्रंथो को पढ़ तो लें, उस देश का, उनलोगों का निरन्तर पतन हो रहा हो, इसमें आश्चर्य क्या है?
न उपनिषदों से कोई ताल्लुक, न ब्रह्मसूत्रों से कोई ताल्लुक, गीता से भी बहुत कम संबंध, अष्टावक्र का कुछ पता नहीं और इनका स्थान किसने ले लिया है ? कुण्डलिनी, ज्योतिष, टैरो, रेकी, न्यूमेरोलॉजी, हठयोग, योगा, मेडिटेशन।
पठन न पाठन, न भजन न सुमिरन, अध्यात्म के नाम पर चल रहा है योगा।
न बोध न करुणा, न सत्य न सौंदर्य, चल रहे हैं फूहड़ अंधविश्वास और नए-नए आकर्षक नामों से बेची जा रही क्रियाएँ।
आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है।