अतीत को भूल क्यों नहीं पाते हैं?

आचार्य प्रशांत: देवेन्द्र ने कहा कि अतीत हावी होने लगता है, स्मृतियाँ आक्रमण करने लगतीं हैं। देवेन्द्र ये बताओ, अतीत कहाँ है? तुम बैठे हुए हो अतीत कहाँ हैं? कहाँ है अतीत? जो है सो अभी है, प्रस्तुत है। अतीत कहाँ है?

अतीत आक्रमण नहीं करता तुम अतीत को आमंत्रित करते हो। कहीं ना कहीं उसको बुला करके तुम्हें सुख मिलता है अन्यथा अतीत अपने आप नहीं घुसा चला आएगा, बिन बुलाया मेहमान। अभी यहाँ हम बैठै हुए हैं देवेन्द्र, मैं कह रहा हूँ तुम सुन रहे हो इसमें अतीत का काम क्या है? और अभी गुजरेगा ये क्षण अगला आयेगा उसमें भी जो है सो है, सामने है, प्रत्यक्ष, उसमें अतीत का काम क्या है? सच तो ये है कि जो प्रस्तुत है उसकी अवेहलना करके तुम जानबूझ करके अतीत को बुलाते हो। रस ना मिल रहा होता तो अतीत कब का विस्मृत हो चुका होता।

एक प्रयोग करो तुम सभी।

अतीत की इतनी स्मृतियाँ हैं, अतीत में इतने क्षण बिताएं है तुम्हें उसमें से कौन-कौन याद से हैं? अच्छी खासी बड़ी सी उम्र हैं, इतने क्षण बिताएं हैं, उनमें से याद कितने हैं? तुम गौर करोगे तो पाओगे कि तुम्दोहें ही प्रकार के क्षण याद हैं या तो वो जिनमें बहुत सुख मिला है या वो जिनमें बहुत पीड़ा मिली है। अब तुम पूछो कि तुमको मात्र इन्हीं प्रकार के दो क्षण याद क्यों हैं? क्योंकि दोनों में ही अहंकार बल पाता है। सुख में तुम कहते हो ये वो था जो मैं चाहता था। जैसी मेरी इच्छा थी वो हुआ। अहंकार खुश। पीड़ा के पल में तुम कहते हो जो मैं चाहता था उसका विपरीत हो गया। और दोनों में ही एक बात केंद्रीय हैं मैं चाहता क्या था? अहंकार। मेरा होना।…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org