अतीत के बोझ का क्या करूँ?

आचार्य प्रशांत: सवाल अच्छा है। ईमानदार सवाल है, ध्यान से देखेंगे इसे। सतीश कह रहे हैं कि ये सब बातें ठीक हैं पर जीवन का एक सत्य ये है कि हम सब अपनी परिस्तिथियों की पैदाइश हैं। बच्चा छोटा होता है, उसे वो ग्रहण करना ही होता है जो उसके आसपास का वातावरण उसे देता है। वो करेगा क्या। बात बिल्कुल ठीक है।

एक उम्र तक तुम कुछ नहीं कर सकते। तुम पूरे तरीके से असुरक्षित होते हो। बच्चा छोटा है, न उसका शरीर विकसित हुआ है और न ही उसका मस्तिष्क विकसित हुआ है। अभी उसमें काबिलियत ही नहीं कुछ समझने-बूझने की। निश्चित रूप से उसके मन में सारी धारणाऐं बाहर से आऐंगी। आनी ही होंगी, विकल्प ही नही है कुछ। बच्चे को बताना होगा कि सड़क के इस तरफ चलो और इस तरफ मत चलो। बच्चे को बताना होगा कि बिजली का सॉकेट है, ऊँगली न डालो। बच्चे को बताना होगा कि पानी गर्म है, हाथ मत डाल देना इसमें। अभी नहीं समझता वो और ये सब जो उपयोगी जानकारी है इसके साथ बच्चे के मन में कुछ और भी प्रवेश कर जाता है, और वो हैं धारणाऐं।

बच्चा छोटा सा होता है, उसको एक धर्म पकड़ा दिया जाता है। बच्चा छोटा सा होता है, उसको एक दृष्टि थमा दी जाती है कि दुनिया ऐसी है, वैसी है।

उसको बोल दिया जाता है कि जीवन का क्या अर्थ है। समाज, परिवार, इनका क्या अर्थ है? पैसे का क्या अर्थ है। ये सब बातें उसके मन में बैठा दी जाती हैं, और वो छोटा होता है। ये सब होकर रहेगा और जैसा परिवेश होता है तुम्हारा, वैसी बातें ही बैठा दी जाती हैं, सतीश ने ठीक कहा। सतीश हम कुछ कर नहीं सकते उस बारे में, वो अतीत है हमारा।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org