अतीत के दुष्कर्म के मानसिक घाव

सबसे पहले तो समझना होगा कि वो जो घटना है दुष्कर्म की, जो शायद दस-बीस साल पहले घटी होगी, आज भी मन पर इतनी छाई हुए क्यों है? मन किसी भी विषय को, स्मृति को, घटना को, क्यों पकड़ता है? इतना कुछ होता है दिन भर, मन उसको तो याद नहीं रखता न? कुछ विशेष घटनाओं को ही मन क्यों छपने देता है अपने ऊपर?

मन वही सब कुछ याद रखता है जो किसी भी तरह से उसे बचे रहने में, उसके आगे बढ़ने में सहयोगी हो। सुख एक तरह की उत्तेजना है, उत्तेजना में मन प्राण पाता है, दु:ख भी एक उत्तेजना है, उत्तेजना में मन प्राण पाता है, मन दुख को भी याद रखना चाहता है। सुख आप बिल्कुल याद न रखे अगर दुख की तलवार आपके सर पर न लटक रही हो।

सुख, दुख पर निर्भर करता है और दुख भी ऐसा ही है फिर वो सुख की आशा पर निर्भर करता है। कुछ हुआ आपके साथ, आप क्यों मान रही हैं कि वो नहीं ही होना चाहिए था? क्योंकि आपको आशा थी कि कुछ और चलेगा जीवन में।

हमें क्यों लगता है कि जो कुछ हमारे साथ हो रहा है हम उसके अधिकारी नहीं है?

दुनिया में इतना कुछ चल रहा है, क्या वो हमें दुखी कर रहा है? आप जिस गाय, जिस भैंस, जिस जीव का दूध पी रहे हैं वो दूध बलात्कार से ही आ रहा है। ये बात आपको दुखी कर रही है? अगर आप दूध पीते हैं तो निन्यानवे प्रतिशत संभावना है कि आपका दूध बलात्कार की उपज है।

आपके शरीर में किसी ने आपकी अनुमति के बिना अपना शरीर प्रविष्ट करा दिया तो आप उसे दुष्कर्म या बलात्कार कह देते हैं लेकिन आपके नथुनों में कोई आपकी अनुमति के बिना ज़हर घोल रहा है, ये बलात्कार क्यों नहीं है? आपके कानों से जो आपके मन में प्रविष्ट कराया जा रहा है, क्या वो सब कुछ आपकी अनुमति से हो रहा है?

बचपन में हुई एक घटना को हम क्या याद रखें जब दिन, प्रतिदिन, पूरी आबादी का, हम सभी का भिन्न-भिन्न तरीकों से भीषण बलात्कार होता है। निश्चित रूप से अति अमानवीय है किसी का यौन-शोषण करना, निश्चित रूप से घोर अपराध है किसी के शरीर का उत्पीड़न करना लेकिन हम भूल क्यों जाते हैं कि बलात्कार के तरीके और भी हैं और उन दूसरे तरीकों के खिलाफ हम कभी आवाज़ नहीं उठाते। आपके मन का दिन-रात बलात्कार कर रही है दुनिया, आपको उसके खिलाफ कुछ नहीं बोलना?

अगर शोषण और अत्याचार के खिलाफ खड़े ही होना है तो बचपन की एक घटना के खिलाफ मत खड़े होइए फिर तो ये जो निरंतर सर्वव्यापक, सार्वजनिक बलात्कार है, इसके खिलाफ आवाज़ उठाए न। ये जो वृहद् स्तर पर बलात्कार चलता है दिन-रात उसी के खिलाफ आवाज़ उठाने का नाम अध्यात्म है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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