अतीत के दुष्कर्म के मानसिक घाव

अतीत के दुष्कर्म के मानसिक घाव

प्रश्नकर्ता: मेरे अतीत में मुझ पर हुए दुष्कर्म, मुझे चैन से जीने नहीं दे रहे हैं। मानो मैं अपने बचपन में ही जिए जा रही हूँ। वही ख्याल, वही सपने। मुझे उस भयानक अतीत से पूरी तरह बाहर आना है। कैसे होगा?

आचार्य प्रशांत: सबसे पहले तो समझना होगा कि वह जो घटना है दुष्कर्म की जो शायद दस-पंद्रह, बीस साल, पच्चीस साल पहले घटी होगी, आज भी मन पर इतनी छाई हुई क्यों है? मन किसी भी विषय को, स्मृति को, घटना को, क्यों पकड़ता है? इतना कुछ होता है दिन भर, प्रतिदिन, मन उसको तो नहीं याद रखता न। कुछ विशेष घटनाओं को ही मन क्यों छपने देता है अपने ऊपर? क्या बात है?

मन वही सब कुछ याद रखता है जो कि सी भी तरह से उसके बचे रहने में, उसके आगे बढ़ने में, सहयोगी हो।

सुख एक तरह की उत्तेजना है। उत्तेजना में मन प्राण पाता है। मन सुख याद रखना चाहता है। दुःख भी एक उत्तेजना है। उत्तेजना में मन प्राण पाता है, मन दुःख को भी याद रखना चाहता है। और याद दिलाने की ज़रूरत नहीं कि दुःख और सुख हमेशा एक दूसरे के संदर्भ में ही याद रखे जाते हैं। सुख आप बिलकुल याद ना रखें अगर दुःख की तलवार आपके सर पर ना लटक रही हो। सुख आप याद रखते ही इसलिए हैं क्योंकि संभावना दुःख की भी थी। दुःख आया नहीं, अनीश टल गया, वाह! क्या राहत मिली; इसी बात की तो उत्तेजना है।

कोई साधारण सा दृश्य हो। ट्रेन पटरी पर दौड़ रही है, आपको याद रह जाएगा ये क्या कभी? कितनी ही बार ट्रेन पटरी पर दौड़ी होगी। आपको बिलकुल नहीं याद रहेगा। लेकिन कभी ऐसा हो जाए कि आप पटरी पार कर रहे थे, थोड़ा सा गुमशुदा थे मन से…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org