अतीत की असफलताओं का क्या करूँ?

जो पुराना दिन बीत जाता है वह पूरी तरह बीत जाता है। वह अपने कोई निशान छोड़कर नहीं जाता। अस्तित्व को देखो, दुनिया को देखो,जो बीत गया वह बीत ही गया। अब उसका कुछ भी बचा नहीं है।

लेकिन हमारा जो मन है वह उसको पकड़ कर के बैठा रहता है। सिर्फ असफलता को ही नहीं, सफलता को भी पकड़ कर बैठा रहता है। जब मैं कह रहा हूँ कि पुरानी असफलता कहाँ बची है, तो मैं तुमसे यह भी कह रहा हूँ कि पुरानी सफलता कहाँ बची है? और मेरे लिए सफलता की बात करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि तुम्हें असफलताएँ याद ही इसलिए रहती हैं क्योंकि तुम्हें बहुत शौक है अपनी सफलताओं को याद रखने का। उस से अहंकार को बड़ी ताकत मिलती है कि “मैं सफल था”। अब याद तो तुम रखना चाहते थे अपनी सफलता, वह मिली नहीं, पर जो मिल गया वह याद रखा है क्योंकि तुमने जगह तो बहुत सारी बना ही दी थी कि इसमें हम याद रखेंगे।

जो असफलताओं के पार जाना चाहता हो, उनसे मुक्ति चाहता हो, उसे सफलताएँ भी भूलनी पड़ेंगी।

क्योंकि हम सफलता को याद रखने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं, इस ही कारण असफलता भी याद आती है। और हम सफलता को क्यों याद रखना चाहते हैं? ताकि हम दावा कर सकें कि हमने जीवन में कुछ कमाया है। ताकि हम दावा कर सकें कि हमारा जीवन खाली ही नहीं है, इसमें कुछ उपलब्धियां हैं। तभी तो सफलताएँ याद रखनी हैं।

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org