अगले जन्म में क्या बनेंगे आप?
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आप पुनर्जन्म से बिलकुल ही इंकार कर देते हैं, जबकि सच ये है कि सिर्फ़ हिंदू धर्म में ही नहीं बल्कि बौद्धों में, सिक्खों में, जैनों में, सबमें पुनर्जन्म को स्वीकारा गया है। यहाँ तक कि जिन संतों के आप बड़े प्रशंसक हैं, उन्होंने भी पुनर्जन्म को स्वीकार किया है। गीता में भी पुनर्जन्म की बात है। इसके अलावा और भी कई उदाहरण और वृत्तांत हैं जो पुनर्जन्म को साबित करते है। और अगर मौत के बाद कुछ नहीं है तो फिर अध्यात्म की क्या ज़रूरत है? खाओ-पियो ऐश करो।
आचार्य प्रशांत: देखो भाई, मैं पुनर्जन्म को अस्वीकार नहीं करता, मैं व्यक्ति के पुनर्जन्म को अस्वीकार करता हूँ। पुनर्जन्म तो होता है, निश्चित रूप से होता है, पर किसका? जिस भाषा में पहले कहा था उसी को आगे बढ़ाकर फिर समझाता हूँ — अहम् वृत्ति का पुनर्जन्म होता है, व्यक्तिगत अहंकार का नहीं। राजू मरकर काजू नहीं बनेगा। और काजू को बिलकुल नहीं याद आने वाला कि मैं पिछले जन्म में राजू था। और काजू अगर बोले कि ‘मैं पिछले जन्म में राजू था, उससे पिछले जन्म में फाजू था, और उससे भी पिछले जन्म में तराजू था; मुझे अपने तीन जन्म याद हैं’ तो ये जो काजू है, ये बहुत बड़ा धूर्त है।
जो कुछ भी व्यक्तिगत है तुम्हारा, व्यक्तिगत, पर्सनल , वो राख हो जाता है मृत्यु के साथ ही। बचा क्या रहता है? एक वृत्ति बची रहती है, वृत्ति, टेंडेंसी। टेंडेंसी कोई चीज़ नहीं होती, वो बस एक टेंडेंसी होती है, एक वृत्ति होती है, ‘ऐसा होता है’। वृत्ति क्या चीज़ होती है? पुनर्जन्म कैसे लेती है? मैं हूँ, मेरे भीतर दस दोष हैं, मान लो मेरे भीतर डर है, एक दोष उठा…