अगर स्वेच्छा से कर रहे तो रुक कर दिखाओ

लत ऐसी है कि — एक घोड़े पर बैठ गए हो और बेहद कमज़ोर आदमी हो। और घोड़ा है बलशाली और ज़िद्दी। और घोड़े को जहाँ तुम्हें ले जाना है, ले जा रहा है। कोई दूर से देखेगा अनाड़ी, तो कहेगा, “ये जनाब घोड़े पर बैठकर जा रहे हैं।” कोई दूर से देखेगा, अनाड़ी होगा, समझ नहीं रहा होगा, तो उसे लगेगा कि आप घोड़े पर बैठकर जा रहे हैं। हक़ीक़त क्या है? आप कहीं बैठ इत्यादि कर नहीं जा रहे, घोड़ा करीब-करीब आपको घसीटता हुआ, जहाँ चाहता है वहाँ ले जा रहा है। ये लत है।

लत में ‘आप’ हैं ही नहीं।

आप कमज़ोर हैं।

लत माने — घोड़ा।

वो आपको जहाँ चाह रही है, ले जा रही है। आप कमज़ोर हैं। आपका कोई सामर्थ्य ही नहीं है कि आप घोड़े को रोक सकें, या उतर सकें, या घोड़े को दिशा दे सकें। ये लत है — आदत।

आदत में ‘आदत’ प्रबल होती है, आप दुर्बल होते हो।

जब बात आती है वरीयता की — वहाँ पर एक मज़बूत नौजवान है, घुड़सवार है। और उसके सामने घोड़े भी खड़े हैं, हाथी भी खड़े हैं, ऊँट भी खड़ा है। रथ भी खड़े हैं, गाड़ियाँ खड़ी हैं। वो चुन रहा है उसे किसपर सवार होना है। वो चुनेगा उसे किस दिशा जाना है, कितनी दूर जाना है। और वो चुनेगा कि उसे कब उतर जाना है।

वरीयता में वरण करने वाला सबल होता है।

उसको चढ़ने का भी अधिकार होता है, और उतरने का भी अधिकार होता है।

लत में न तुम्हें चढ़ने का अधिकार था, न उतरने का अधिकार है, न तुम्हें उस घोड़े को लगाम देने का कोई अधिकार है। वो…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org