अगर सभी बुद्ध जैसे हो गये तो इस दुनिया का क्या होगा?

श्रोता: सर, अगर सब लोग ही इस दुनिया में बुद्ध के जैसे हो गए तो फिर ये दुनिया कैसे चलेगी?

वक्ता: कौन सी दुनिया? ‘इसके’ अलावा कोई दुनिया जानते हो? ये सब चलना बंद हो जाएगा जो अभी चल रहा है। ये बात कितनी खौफनाक लग रही है कि — रोज़ सुबह मुझे कोई तंग नहीं करेगा, रोज़ रात कोई मुझपर हावी नहीं होगा, रोज़ मेरा खून नहीं चूसा जाएगा, मेरा चेहरा लटका हुआ नहीं रहेगा — कितनी भयानक बात है न! हे भगवान! ये दुनिया चलनी बंद हो जाएगी।

(सभी हँसते हैं)

श्रोता: सर, मैं कह रहा हूँ कि फ़िर से कोई व्यवस्था स्थापित कर दी जाएगी

वक्ता: उसको ‘व्यवस्था कहें कि न कहें’ — ये बड़ा विचारनिये प्रश्न है क्योंकि व्यवस्था अभी है। अभी हम ये बात नहीं कर रहें हैं कि साम्यवाद को उखाड़ कर के पूंजी वाद लाना है, अभी बात हो रही है कि व्यवस्था अभी है। हाँ, उस व्यवस्था के नाम बदलते रहते हैं और ये सारी व्यवस्था हमारे संस्कार की व्यवस्था है, वो कभी एक तरफ की व्यवस्था को जाती है कभी दूसरी तरफ की व्यवस्था को जाती है; कभी एक नाम देती है तो कभी दूसरा नाम देती है, कभी एक धर्म पकड़ लेती है तो कभी दूसरा धर्म पकड़ लेती है।

इस व्यवस्था के बाद जो होगा उसे व्यवस्था नहीं कहना चाहिए। व्यवस्था अभी है। इसके बाद जो होगा, वो उस अर्थ में व्यवस्था होगा ही नहीं जिस अर्थ में आप व्यवस्था शब्द का प्रयोग करते हैं। वो एक दूसरी व्यवस्था होगी या तो फिर अगर कहना ही है तो उसे आप, एक ‘दैवीय व्यवस्था’ कहिये, अन्यथा उसे व्यवस्था कहिये ही मत।

श्रोता: सर, तो वो व्यवस्था कैसी होगी?

वक्ता: वो पता नहीं, उसकी कल्पना मत करिए क्योंकि कल्पना आप जो भी करेंगे वो इसी तरह…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org