अगर सच्ची है शांति, तो अशांति में कूदो

जो शांत हो जाते हैं, उनको पुरस्कार ये मिलता है कि उनको अशांतियों के मध्य धकेल दिया जाता है।

भीतर की शांति लगे कि इतनी पुख्ता हो गई है कि अशांति को अब दूर धकेल देती है, तो कूद पड़ो जीवन में, चुनौतियों को स्वीकार करो। भिड़ जाओ माया से।

कमज़ोरों को, बीमारों को, तो ये ही सलाह दी जाती है कि ठण्ड में बाहर मत निकलना। और जो बाकी मर्द होते हैं, वो ठण्ड में भी नंगे सीने के साथ निकल पड़ते हैं, हवाओं को झेलते। इससे उनकी जवानी और गहराती है।

व्यायाम क्या है? खुद को कष्ट देने का ही तो नाम है। पर वो कष्ट जब तुम खुद को देते हो, तो जवानी खिल उठती है। ताकत जो छुपी बैठी थी, वो प्रकट होने लगती है। सम्भावना पहले ही थी, पर वो सम्भावना सोई पड़ी थी। तुमने अपनी सम्भावना को चुनौती दी, तो वो जाग उठी अब।

लेकिन वो चुनौती उन्हीं को दी जाती है, जिनमें सामर्थ्य हो चुनौती झेलने की।

शान्ति शिव है, उसका शक्ति से नाता है। शक्ति इसलिए थोड़ी ही होती है कि छुपी बैठी रहे। शक्ति होती है ताकि वो अशांति का, अधर्म का संहार करे।

तो उपचार यदि हुआ है तुम्हारा, तो संहार करो। दिखाओ कि क्या झेल लिया, क्या बदल डाला। सबूत दो!

शान्ति बिछौना नहीं है कि उस पर सो गए। वो हथियार है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org