अगर देश के लिए खेलने का अरमान हो

देश के लिए खेलना चाहते हो, तो फिर देश के लिए खेलने को ही जीवन बना लो, जीवन में और दूसरी कोई बात बचनी ही नहीं चाहिए।

अस्तित्व का नियम समझो। हंस हंस के साथ रहता है, कौआ कौवे के साथ रहता है। शेर और कुत्ते को तुम एक झुंड में घूमता नहीं पाओगे। जिसको बहुत ऊँचे जाना हो वो फिर उस ऊँचे को ही जीवन बना ले, वो ये नहीं कर सकता कि एक लक्ष्य तो मेरा ये है कि देश के लिए क्रिकेट खेलना है, राष्ट्रीय टीम का सदस्य बनना है, और दूसरा लक्ष्य मेरा ये है कि वहाँ चौराहे पर मुफ़्त के गोलगप्पे भी खाने हैं।

अब या तो तुम राष्ट्रीय टीम की ओर देख लो या फिर तुम ये जो घटिया काम हैं इन्हीं को जीवन में रख लो, दोनों को एक साथ नहीं रख पाओगे। पर हमारी बड़ी ज़िद होती है, बड़ी मूर्खतापूर्ण ज़िद होती है कि हमें तो दोनों चाहिए, ऊँचे-से-ऊँचा भी चाहिए और ये सब जो अंडू-पंडू चीज़ें हमने जीवन में शामिल कर रखी होती हैं, हमें उनको भी रखना है, दोनों को एक साथ नहीं रख पाओगे।

राष्ट्रीय टीम की ओर अगर देखना है तो चौपले के अपने अरमानों को तुम्हें विदा करना पड़ेगा, और चौपला ही तुम्हें बहुत प्यारा है, कि, “वहाँ जाएँगे और वहाँ मेरे ही जैसे पाँच-सात होते हैं, उन्हीं के साथ मूँगफली खाएँगे, गोलगप्पे खाएँगे, एकाध-दो घंटे गपशप करेंगे,” तो तुम फिर यही कर लो, फिर राष्ट्रीय टीम को भूल जाओ।

जिसे जहाँ जाना होता है उसे वहाँ पहुँचने से पहले ही वहाँ का हो जाना पड़ता है, नहीं तो फिर तुम जहाँ के हो वहीं के रह जाओगे। तुम ये थोड़े ही कहते हो कि राष्ट्रीय टीम में प्रवेश मिलेगा उसके बाद…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org