अकेले होते ही छा जाती है बेचैनी

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी ऐसा है, जब सबके साथ होते हैं या कोई काम कर रहे होते हैं तब तक तो ठीक है लेकिन जैसे ही अकेले बैठते हैं तो बेचैनी जैसा होता है। मन में ऐसा होता है कि कुछ मिसिंग है, खालीपन सा है। समझने की कोशिश करता हूँ, लेकिन समझ में नहीं आता है क्या बात है?

आचार्य प्रशांत: जिनके साथ काम कर रहे हो और जो काम कर रहे हो उसमें अगर दम ही होता, तो उस काम ने तुम्हारा पूरा दम निचोड़ लिया होता न? यह सब अनुभव करने के लिए, सोचने के लिए तुम बचे कहाँ होते कि- खालीपन है, अधूरापन है, क्या करूँ? क्या न करूँ?

दिक्कत शायद उन पलों में नहीं है जब अधूरेपन या खालीपन का अनुभव होता है। दिक्कत शायद वहाँ है जहाँ इस खालीपन का अनुभव नहीं होता है।

जहाँ ये अनुभव नहीं हो रहा है, वहाँ ये खालीपन दबा हुआ है, छुपा हुआ है। काम क्या बन जाता है? आंतरिक हकीकत को छुपाने का बहाना। अपने आपको व्यस्त रख लो, कुछ सोचने समझने का मौका ही नहीं मिलेगा। उसमें दिक्कत बस छोटी सी यह है कि अगर जिस काम में अपने आपको व्यस्त रख रहे हो वह सही नहीं है, तो उसमें अपने आप को तुम पूरी तरह से झोंक पाओगे नहीं। उसमें तुम्हारा मन पूरे तरीके से कभी लीन होगा नहीं और मन जब उसमें लीन होगा नहीं, तो तुम पूरी उर्जा उसमें लगाओगे नहीं। ऊर्जा वहाँ नहीं लगेगी, तो ऊर्जा क्या करेगी? ऊर्जा बची रहेगी और आ करके तुम्हें ही परेशान करेगी, जैसे ही काम खत्म होगा।

तो इसीलिए सही काम करने का बढ़िया फ़ायदा यह होता है कि काम के बाद हाज़मा अच्छा रहता है और नींद बढ़िया आती है और यह सब ख़्याल नहीं बचते कि…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org