अकेलेपन से डर क्यों लगता है?

अकेलापन हम सभी को परेशान करता है। थोड़ा-सा अकेले होते नहीं है कि तुरंत फेसबुक खोल लिया, फ़ोन मिला लिया। इतना ही नहीं, अगर आप किसी और को अकेला देख लेते हो, तो बोलते हो, ‘क्या हुआ? इतना उदास क्यों हो?’ जैसे की अकेला होना उदास होने का सुबूत है। अगर हॉस्टल में रहते हो और सारे दोस्त घर चले जाते हैं तो पागल हो जाते हो, भागते हो।

अकेलेपन से हमें डर इसलिए लगता है क्योंकि हमें जो कुछ भी मिला हुआ है, वो दूसरों से ही मिला हुआ है।

और दूसरों से जो मिला है, उसके अलावा हमने अपने आप को कभी जाना नहीं है। तो यह दूसरे जब कुछ देर के लिए जीवन से हटते हैं, तो हमें ऐसा लगता है कि जीवन ही बंद हो गया है क्योंकि जो पूरी तरह से अपना है, उसको हमने कभी जाना ही नहीं है। हमने सिर्फ वही जाना है जो हमें किसी और से मिला है। और हमें सब कुछ दूसरों से ही मिला है। नाम दूसरों से मिला है, मान्यताएं दूसरों से मिली हैं, धर्म दूसरों से मिला है, ज़िन्दगी की परिभाषा दूसरों से मिली है। मुक्ति, सत्य, पैसा, करियर, प्रेम, समाज इन सबकी परिभाषा दूसरों से मिली है। इसलिए थोड़ी देर के लिए जब यह दूसरे ज़िन्दगी से दूर हो जाते हैं, तब बड़ी ज़ोर से डर लगता है।

डर लगना तो स्वाभाविक है क्योंकि अगर यह ज़िन्दगी दूसरों का ही नाम है, तो जब दूसरे हटते हैं तो ऐसा लगता है कि ज़िन्दगी ही दूर हट गई है।

अकेलेपन से बस उसको ही डर नहीं लगेगा जिसने खुद को जाना है। जो कहता है, ‘दूसरों के अलावा भी मेरा कुछ है जो किसी ने मुझे दिया नहीं, और कोई मुझसे छीन नहीं सकता’, वही नहीं डरेगा अकेलेपन से।

फिर उसके लिए अकेलापन बन जायेगा कैवल्य, और इन दोनों शब्दों में बहुत अंतर है, ज़मीन आसमान का। अब उसके लिए अकेलापन एक डरावना सपना नहीं रह जाता है। वही एकांत अब एक उत्सव बन जाएगा। पर हममें से बहुत लोगों को अपने साथ समय बिताना ही पसंद नहीं होता। हमें अकेला छोड़ दिया जाये तो बहुत असहज हो जाते हैं।

जिसको अपना साथ पसंद नहीं है, किसी और को उसका साथ कैसे पसंद आएगा?

पहले तो आप कैवल्य को पाइए, आपने साथ खुश रहना सीखिये, दूसरों पर निर्भरता हटा दीजिये। इस अकेलेपन को कैवल्य में बदलिये। और बहुत मज़े की बात है कि जो अपने में खुश होना जान जाता है, फिर जब वह दूसरों के साथ होता है तो पूरी तरह से उनके साथ हो जाता है। जो अकेला है, जब वह दूसरों के साथ होता है तो क्या होता है? साथ के लिये बेचैन, ‘बस कोई मिल जाये’। तो अब जो भी मिलेगा, मैं क्या करुंगा उसके साथ? ‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता’। और दूसरा कह रहा है, ‘मुझसे क्या गलत हो गयी? छोड़ दे मुझे’।

अकेलेपन के कारण जो भी संबंध बनेगा, वो दुःख ही देगा।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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