अकेलेपन से घबराहट क्यों?

प्रश्न: क्या अकेलेपन से डरने का कारण अहंकार है?

आचार्य प्रशांत: तुम जब तक दुनिया के सामने रहते हो, तो अपने बारे में सोचने का, या अपने ऊपर ध्यान देने का बहुत मौका रहता नहीं। तुम व्यस्त रहे आते हो। जब दुनिया नहीं सामने होती, सिर्फ़ तुम होते हो, जीवन की ऊब, बेचैनी, छटपटाहट, ये सब सामने खड़े हो जाते हैं, इसलिए ‘अकेलेपन’ से घबराते हो।

जो स्वस्थ आदमी है, वो अकेलेपन से नहीं घबराएगा। जिसके पास भीतर सौ तरह के भूत-प्रेत, पिशाच हैं, वो घबराता है अकेलेपन से, क्योंकि उसको पता है कि अकेला हुआ नहीं कि ये सब निकल-निकल के बाहर आएँगे, और नाचेंगे चारों ओर।

अकेले तो हम होते भी नहीं हैं ना? हमारे साथ हमेशा कौन होते हैं भीतर? भूत-प्रेत, पिशाच।

जब तक दुनिया के साथ हो, काम में लगे हो, धंधे में लगे हो, बाज़ार में हो, पार्टी में हो, तब तक वो भूत-पिशाच चुपचाप बैठे रहते हैं। कहते हैं कि — “अभी तो बहुत लोग हैं, अभी हम सामने नहीं आएँगे।” और जैसे ही कोई नहीं होता सामने, तुम अकेले होते हो अपने कमरे में, तो भीतर वाले कहते हैं — “अकेले नहीं हो तुम, हम भी हैं ना।” और अब तुम गए।

अगर पूरी तरह अकेले होते तो नहीं डरते, भीतर और भी लोग हैं। ये भीतर वालों को हटा दो, अकेलेपन से डर नहीं लगेगा। भीतर जो सब घुस के बैठे हैं, उनसे कहो — “कमरा खाली करो, चलो निकलो। बहुत हो गया।” उसके बाद अकेलेपन से डर नहीं लगेगा।

हमारी हालत ऐसी है कि जैसे हमारे घर में कोई लुटेरा घुस आया हो, और उस लुटेरे ने हमारी किसी प्यारी चीज़ को पकड़ लिया है…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org