अंग्रेज़ी के सामने हिंदी कैसे बचेगी और बढ़ेगी?
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शिक्षा होती है वो जो बच्चे को जानवर से इंसान बनाए। रोज़गार पाने के लिए अंग्रेज़ी भाषा में वो शिक्षा दे रहें हैं तो देते रहें; रोटी की भाषा अंग्रेज़ी होती है तो होती रहे। हर बच्चे को, हर व्यक्ति को एक दूसरी शिक्षा भी चाहिए। उस शिक्षा का माध्यम हिंदी बनेगी, दूसरी क्षेत्रीय भाषाएँ बनेंगी।
अगर आप यह सोचेंगी कि एक ही शिक्षा है, वो जो स्कूल, कॉलेज में दी जा रही है, तो आपको लगेगा, “अरे अरे! अंग्रेज़ी छा गई”। वहीं भर शिक्षा थोड़े ही है, हम भी तो शिक्षा दे रहे हैं, और यह असली शिक्षा है। और ये जो असली शिक्षा है, यह भारत की मिट्टी की भाषाओं में ज़्यादा खूबसूरती से दी जा सकती है। बहुत अंग्रेज़ी पढ़ा-लिखा इंसान होगा हिंदुस्तान में, ऐसा भी होगा जो देवनागरी लिखना ही भूल गया हो, ‘क’ न लिख पाता हो अब, वो भी गाने तो मोहम्मद रफ़ी के ही सुनता है। भारत के एक-से-एक भूरी चमड़ी वाले अंग्रेज हैं, गाली तो वो भी हिंदी में ही देते हैं। तो आप चिंता मत करिए।
कोई भी भाषा अपनी उपयोगिता के आधार पर ही ज़िंदा रहती है। जो भाषा अनुपयोगी हो गई, वो मर जाती है। आप उसको बहुत दिनों तक कृत्रिम तरीकों से, वेंटीलेटर पर ज़िंदा नहीं रख सकते। आप यह नहीं कह सकते, “अरे अरे! पुरानी भाषा है, ज़िंदा रखो, ज़िंदा रखो”। उपयोगी होगी तो ज़िंदा रहेगी। लोगों के काम की होगी तो ज़िंदा रहेगी।
अंग्रेज़ी का भी आप इतना फैलाव इसीलिए देख रही हैं क्योंकि उससे लोगों को कुछ लाभ हो रहा है। क्या लाभ हो रहा है? रोज़गार मिल रहा है। हिंदी हो चाहे तमिल हो, उससे भी अगर लोगों को लाभ होगा, तो ये भाषाएँ खूब फैलेंगी।
आप फिल्में देखने जाती हैं, वो फिल्में दिल को छू जाती हैं न? ये लाभ है न? तो इसीलिए भारत में जो फिल्म इंडस्ट्री है वो दुनिया की फिल्म इंडस्ट्रियों में बड़ी-से-बड़ी है। इसी तरीके से अगर अध्यात्म की भाषा हमारी मिट्टी की भाषाएँ रहेंगी तो लोगों को मजबूर होकर के हिंदी, तमिल, तेलुगू, बंगाली, पंजाबी सीखनी पड़ेंगीं। लोग सीखेंगे। खासतौर पर बंगाल में तो कई उदाहरण रहें हैं जहाँ लोगों ने बंगाली सीखी इसलिए क्योंकि वो बंगाली का कोई उपन्यास पढ़ना चाहते थे। इसी तरीके से चंद्रकांता और चंद्रकांता संतति का उदहारण है। जब यह छपे तो इतने प्रसिद्ध हुए कि लोगों ने इन पुस्तकों को पढ़ने के लिए भाषा सीखी। अब भाषा की उपयोगिता है न कि तुम्हें यह भाषा आती है तभी तो तुम चद्रकांता पढ़ पाओगे? तो ऐसा कुछ करा तो जाए न हिंदी में कि जो इतना उपयोगी हो कि लोगों को हिंदी की ओर लौटना पड़े या हिंदी सीखनी ही पड़े। हिंदी में कुछ ऐसा होगा तो हिंदी अपने आप आगे बढ़ेगी, सब भाषाएँ बढ़ेंगी।
तो नारे लगाने से कुछ नहीं होगा, हिंदी पखवाड़ा मनाने से कुछ नहीं होगा, बार-बार ये कहने से नहीं…